A poem on influence of money in our lives. Exaggeration is done with the intention to have an impact and to express severity.
पैसा ही है
बस पैसा ही..
पैसा आनंद बी है ,
दुःख का कारण बी है।
सांस बी पैसे की है ,
आस बी पैसे की ही है।
पैसा ही है
बस पैसा ही..
पैसा आनंद बी है ,
दुःख का कारण बी है।
सांस बी पैसे की है ,
आस बी पैसे की ही है।
पैसा ही है
बस पैसा ही..
रिश्ते-नाते, 'थे' बड़े अनमोल ..
सबका है अब रुपयों में मोल।
दोस्ती, यारी, मिलन-मिलाप,
सब पर है पैसे की छाप!
पैसा ही है
बस पैसा ही..
तरक्की का पैमाना है,
पैसा गुनाहों का जुर्माना है।
हस्ती बनाता है ,
पैसा, गृहस्ती सजाता है।
पैसा ही है
बस पैसा ही..
धरती, जल, फलक, पवन,
सबको तोलते हैं पैसों में ।
नेता, अफसर, बाबु, अधिकारी
सब बोलते है पैसों में ।
पैसा ही है
बस पैसा ही तोह है!! ..
पैसा जरिया बनकर आया था
अब ज़रूरत बन चूका है!!!
इंसान में अब 'इंसान' न रहा
बस पैसा ही..
रिश्ते-नाते, 'थे' बड़े अनमोल ..
सबका है अब रुपयों में मोल।
दोस्ती, यारी, मिलन-मिलाप,
सब पर है पैसे की छाप!
पैसा ही है
बस पैसा ही..
तरक्की का पैमाना है,
पैसा गुनाहों का जुर्माना है।
हस्ती बनाता है ,
पैसा, गृहस्ती सजाता है।
पैसा ही है
बस पैसा ही..
धरती, जल, फलक, पवन,
सबको तोलते हैं पैसों में ।
नेता, अफसर, बाबु, अधिकारी
सब बोलते है पैसों में ।
पैसा ही है
बस पैसा ही तोह है!! ..
पैसा जरिया बनकर आया था
अब ज़रूरत बन चूका है!!!
इंसान में अब 'इंसान' न रहा
अब वोह नोटों का घुलाम बन चूका है!!
bahut badhiya hai .
ReplyDeletebahut badhiya !
ReplyDeleteShukriya Onika!
Deleteamazing .
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