A poem on life in general, treating time as a travel on boat.. वक़्त की कश्ती में संवार होकर चलें जा रहा हूँ ... वहीँ से ही इस जहाँ को निहारते जा रहा हूँ । जब किनारा छोड़ा था नासमझ बेफिक्र सा था । आज बी खुद को समझदार नहीं कह सकता ।
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