Posting after a long long time. This poem is an expression of my passion to listen people and talk to people, who have something in common, it can be a common profession, hobby or just the mutual urge to know each other. This poetry is actually a reason behind attending conferences, meetups and poetry sessions, despite being a not-so-social guy.
आराम सहा नहीं जाता मन से,
तो कुछ जानने निकल जाता हूँ|
आराम सहा नहीं जाता मन से,
तो कुछ जानने निकल जाता हूँ|
घर के सुकून से निकलकर,
कोई जूनून ढूंढने निकल जाता हूँ|
कोई जूनून ढूंढने निकल जाता हूँ|
यूँ तो ख्यालों की आबादी काम नहीं मेरे जहां में,
फिर भी औरों के सुनने चला जाता हूँ|
फिर भी औरों के सुनने चला जाता हूँ|
सोच उतनी ही होती है, जितने
में वो कैद रहती है,
उस सोच को अक्सर आज़ाद करने निकल जाता हूँ|
उस सोच को अक्सर आज़ाद करने निकल जाता हूँ|
अक्सर मतभेदों से
मुलाक़ात होती है,
कभी वक़्त जाया करते हैं,
कभी उन्हें अपनाने को मजबूर हो जाता हूँ|
मैं बातें करने के लिए जाना नहीं जाता,
और सुननेवालों को जानता ही कौन है,
व्यापारी हूँ सच्चा, कुछ कहे बिना,
बहुत कुछ सुन समेट लाता हूँ|
कभी वक़्त जाया करते हैं,
कभी उन्हें अपनाने को मजबूर हो जाता हूँ|
मैं बातें करने के लिए जाना नहीं जाता,
और सुननेवालों को जानता ही कौन है,
व्यापारी हूँ सच्चा, कुछ कहे बिना,
बहुत कुछ सुन समेट लाता हूँ|
आराम सहा नहीं जाता मन से,
तो कुछ जानने निकल जाता हूँ|
तो कुछ जानने निकल जाता हूँ|
☺beautiful
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