पता ही नहीं चला,
यह कब हुआ?
कब वह पंछियों की आवाजें,
सुरों से शोर में बदल गई|
कब तारे यूँ पराये हो गए,
की जैसे एक अरसे से मिले नहीं है|
कब दुनियादारी के दांव पेंच सीखे|
कब दफ्तर की ज़िम्मेदारी को जाना|
कब रंग बिरंगे ख्वाब,
पैसों के हरे नोटों से भर गए|
पता ही नहीं चला,
मैं कब बड़ा हुआ?
यह कब हुआ?
कब वह पंछियों की आवाजें,
सुरों से शोर में बदल गई|
कब तारे यूँ पराये हो गए,
की जैसे एक अरसे से मिले नहीं है|
कब दुनियादारी के दांव पेंच सीखे|
कब दफ्तर की ज़िम्मेदारी को जाना|
कब रंग बिरंगे ख्वाब,
पैसों के हरे नोटों से भर गए|
पता ही नहीं चला,
मैं कब बड़ा हुआ?
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