पता ही नहीं चला, यह कब हुआ? कब वह पंछियों की आवाजें, सुरों से शोर में बदल गई| कब तारे यूँ पराये हो गए, की जैसे एक अरसे से मिले नहीं है| कब दुनियादारी के दांव पेंच सीखे| कब दफ्तर की ज़िम्मेदारी को जाना| कब रंग बिरंगे ख्वाब, पैसों के हरे नोटों से भर गए| पता ही नहीं चला, मैं कब बड़ा हुआ?
Live..Learn..Think