This poetry is a note-to-self. राह चलते, किसी अजनबी से आँखें मिले तो, ज़रा मुस्कुरा लिया करो| ज़रा सा जोखिम उठा लिया करो| बड़े mature हो तुम सब जानते हैं, पर कभी मन मानियाँ कर लिया करो| ज़रा सा जोखिम उठा लिया करो| मौसम का कहा भी कभी मान लिया करो , अपना कोट उतारकर बूंदों को गले लगा लिया करो| ज़रा सा जोखिम उठा लिया करो| हर बार बोलों के मायने मत टटोला करो , कभी कभी बस धुनों पर कदम थिरका लिया करो| ज़रा सा जोखिम उठा लिया करो| तुम्हारी खामियां भी तुम्हारी अपनी हैं, उनका बेहिचक मज़ाक बना लिया करो| ज़रा सा जोखिम उठा लिया करो| कहते है फ़ाज़ली जी, होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज़ है| कभी कभी बेख़ुदीयों को आजमा लिया करो ज़रा सा जोखिम उठा लिया करो|
Hello everybody! It has been a long time! In this piece, I wanted to talk about myself. As many of you would have observed or knew that I am an introvert or a not-so-social person. Poetry is a perfect outlet for people like me. Hope you like this. P.S. तालाब is a metaphor मैं तालाब हूँ| सतत बहना मेरा मिज़ाज नहीं, न मैं चट्टानों से लड़ने का दावा करता हूँ| मैं दूसरे नदियों या की तालाबों से भी, ज्यादा मिलता जुलता नहीं हूँ! मेरे ख्याल में नदी खुदको , बड़ी खूबी से market करती है ! प्रस्ताव, पानी की आवाज़ और पर्वतों से बहने का दो दृश्य दिखाकर, आकर्षित करती है! और दूसरी और देखो तो मैं , निशब्द, अपने आप में एक संसार | न कोई आकर्षण, न कोई अदा, मेरा परिचय ही चुप्पी है| कहने को है बहुत कुछ मुझे भी, बस जुर्रत नहीं कहने की| बेचने नहीं आता मुझे, तो तसल्ली के लिए कह देता हूँ की बिकाऊ नहीं हूँ| मेरे तेवर से तुम्हें, जलन की बू आ रही होगी, पानी का बना हूँ, पर मुझमें ज़रा सी जलन है | शायद जलन नहीं है, शायद नदी जैसा बन्ने की, एक तीव्र ललक है|