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Showing posts from October, 2015

Pata hi nahi chala..

पता ही नहीं चला,  यह कब हुआ? कब वह पंछियों की आवाजें, सुरों से शोर में बदल गई| कब तारे यूँ पराये हो गए, की जैसे एक अरसे से मिले नहीं है| कब दुनियादारी के दांव पेंच सीखे| कब दफ्तर की ज़िम्मेदारी को जाना| कब रंग बिरंगे ख्वाब, पैसों के हरे नोटों से भर गए| पता ही नहीं चला,  मैं कब बड़ा हुआ?