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Showing posts from 2015

Pata hi nahi chala..

पता ही नहीं चला,  यह कब हुआ? कब वह पंछियों की आवाजें, सुरों से शोर में बदल गई| कब तारे यूँ पराये हो गए, की जैसे एक अरसे से मिले नहीं है| कब दुनियादारी के दांव पेंच सीखे| कब दफ्तर की ज़िम्मेदारी को जाना| कब रंग बिरंगे ख्वाब, पैसों के हरे नोटों से भर गए| पता ही नहीं चला,  मैं कब बड़ा हुआ?

क्या हर ज़िन्दगी एक जैसी होती है?

A poetry after a really long time. Its about how different our lives are despite being so similar. Do give it a read. क्या हर ज़िन्दगी एक जैसी होती है? सांसें में भी ले रहा हूँ, साँसे तुम भी ले रहे हो हवा भी वही है लगभग, क्या तुम भी वैसे ही जी रहे हो? क्या हर ज़िन्दगी एक जैसी होती है? महज़ जिंदा रहना ही, क्या जीना होता है? हालात  अलग, तजुर्बे अलग, तो सोच की बनावट अलग, यूँही तो नहीं नजरिया अलग होता है क्या हर ज़िन्दगी एक जैसी होती है? तो क्या हर ज़िन्दगी, मुख्तलिफ है? दर्द मुझे भी होता है, दर्द तुम्हें भी होता है| मुस्कराहट मेरे पास भी है, हँसना तुम भी जानते हो| दिन और रात के झूले में, तुम भी झूलते हो और मैं भी| पर कुछ एक जैसा होने से, सब कुछ एक जैसा होना ज़रूरी तो नहीं| अगर हर ज़िन्दगी एक जैसी होती तो, तुम्हें 'तुम' कहने और मुझे 'मैं' कहने की क्या ज़रूरत पढ़ती?

इंटरप्रेन्योर (Entrepreneur)

पत्थरों के ढेरों से, सीढियां बना देते हैं| खामियां को बेचकर, उद्योग बना देते हैं| अक्सर आज से, नाखुश रहते हैं| बीतने से पहले, वक़्त बदल देते हैं| कल्पना ऐसी, आसमान कम पड़ जाए! नज़र जामाए हैं, कोई मौका बचकर दिखाए| अक्सर मोहब्बत में, मुश्किलें होती है| यह कैसी नस्ल है, जिन्हें मुश्किलों से, मोहब्बत है| कल की दास्ताँ के रचनाकार हैं| सिरफिरे से, इंटरप्रेन्योर हैं| इंटरप्रेन्योर= Entrepreneur

Bas bahana chahte hain..

Hear the recital of this poetry A simple poetry on convenience, inertia of human beings. Mann jo chahta hain, wahi hum karte hain.. bas tasalli k liye hum bahana chahte.. humein pata hai ki, subah ka vyayaam faaydemand hai.. par neend ki kami ka hawala dekar, aankhein khol kar fir so jaate hai.. bas tasalli k liye bahana chahte hai.. woh new year resolutions, jo saalon se hum dohra rahein hain.. aaj tak uss 'new year' ka intezaar kar rhe hain, Thak gaye hain woh, apna naam badalkar 'new year excuses' karne ka vichar kar rhe hain! bas tasalli k liye bahana chahte hai.. asal mein yeh jadhta, sirf rojmarra ki zindagi mein hi nahi, Vicharon mein bhi jaa baithi hai.. kuch galat hota hai toh use badalne k bajay, uss galat mein kuch sahi dhundhne lagte hai.. kuch 1 pratishat bhi sahi mil jaaye,  toh use 100 pratishat samajhkar mann shant kar lete hain.. bas tasalli k liye bahana chahte hai.. Ek hi jagah rehkar, bhala kaun aage badh saka hai? aage badhna hai, toh

Baat

A random poetry Dilchasp hai, Yeh baat shuru kahan hoti hai, Aur kaise dafan hoti hai.. Zuban se nikli thi toh seedhi saadhi thi, Par kaano mein pahuchte hi bigad jaati thi.. Shayad badal deti hogi hawa ise, Wah bhi toh grast hai pradushan se.. Par yeh bhi toh ho sakta hai hawa begunaah ho, Asliyat mein yeh kaano ka hi karnama ho.. Seedhi saadi cheez kitni boring se hoti hai na, Kuch alag ho, masala ho tabhi toh baat bikti hai na.. Baat fir pehle jaisi kahan rehti hai, Zuban badalti hai aur baat badal jaati hai.. Kaha tha kisi shayar ne, Baat nikli hai toh dur talak jaegi.. Umeed karta hun baat nikle, Toh sahi salamat pahuche.. Dilchasp hai, Yeh baat shuru kahan hoti hai, Aur kaise dafan hoti hai.. Shukriya!

आदतें!

A poetry(without a poetic scheme) after a long time. It is about habits we possess. Hope you find it good :) आदतें! इतनी जुडी है हमसे, की पहचान बन जाती है | शक्ल सूरत और अंगूठों क निशाँ, का विकल्प बन जाती हैं| आदतें! आग की तरह फैलती है, आदतें बड़ी 'contagious' होती है| पानी से नहीं, हवा से नहीं, बस साथ वक़्त बिताने से फैलती है| आदतें! अच्छी, बुरी, सस्ती, मेहेंगी हर तरह की होती है आदतें| सब अपनी मर्ज़ी और औकात अनुसार, पालते है  आदतें| आदतें! याद दिलाती है आदतें, बल्कि यादों का हिस्सा होती है| उस बच्चे को नाख़ून खाता देख, मुझे अपनी याद आती है| आदतें हरकतों तक सीमित हो तो भी ठीक है, अक्सर इंसानों की आदत हो जाती है| इस आदत को शायद प्यार कहते हैं|